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शिवानंद तिवारी ने सीएम नीतीश को लिखा पत्र, कहा -खतरे में लोकतंत्र, स्कूलों में प्रार्थना की तरह हो संविधान की प्रस्तावना का पाठ

लाइव सिटीज, पटना: राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम खुला पत्र लिखा है. शिवानंद तिवारी ने लिखा है कि हमारे संविधान पर आज गंभीर खतरा है, आप इसे स्वयं महसूस कर रहे होंगे. उन्होंने इस पत्र की कॉपी डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव, आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद के साथ ही महागठबंधन में शामिल सभी दलों के नेताओं को भी भेजा है.

अपने लेटर में लिखा कि ”माननीय मुख्यमंत्री जी आप स्वयं महसूस कर रहे होंगे कि हमारे संविधान और लोकतंत्र पर आज गंभीर ख़तरा है. इसके पहले आपातकाल के रूप में हमलोगों ने संविधान और लोकतंत्र पर ख़तरे को झेला है. लेकिन उस अंधेरे दौर को पार कर, देश ने लोकतंत्र को पुनः स्थापित किया था. लेकिन संविधान पर आज फिर से जो ख़तरा दिखाई दे रहा है. वह पहले के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा गंभीर और चिंताजनक है.

बिहार के महागठबंधन में कांग्रेस भी साथ है. इसलिए आपातकाल को शिवनांद तिवारी ने ‘भटकाव काल’ बताया और लिखा कि कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई लड़ी गई थी. संविधान का निर्माण किया गया. जवाहर लाल नेहरू ने संविधान के उद्देश्यों की घोषणा की, इसलिए जो आपातकाल लगा वह एक भटकाव था. लेकिन आज की जो स्थिति है आज जो संविधान और लोकतंत्र पर नजर आ रहा है उसका असर बहुआयामी दिखाई दे रहा है.

उन्होंने लिखा कि ”राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में देश में जो सरकार है उसका यक़ीन भारतीय संविधान में नहीं है. वह लोकतंत्र में भी यक़ीन नहीं करती. उसके विचार इस मामले में प्रारंभ से ही बिल्कुल स्पष्ट और घोषित हैं. देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की संविधान विरोधी घोषणा इनके द्वारा रोज़ाना हो रही है. यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि हिंदू समाज की संरचना ही संविधान विरोधी है. हमारा संविधान सबको बराबरी और समान अवसर देने की गारंटी देता है. जबकि हिंदू समाज में व्यक्ति का स्थान जन्मना निर्धारित होता है.

शिवानंद तिवारी ने आगे लिखा कि ”हिंदू समाज का एक छोटा हिस्सा जन्मना श्रेष्ठ माना जाता है. ज्ञान, विद्या, धन, संपत्ति राज-काज आदि उन्हीं के लिए आरक्षित हैं. जबकि शेष के ज़िम्मे श्रेष्ठों की सेवा और चाकरी को धार्मिक कर्तव्य माना गया है. लगभग एक चौथाई आबादी तो अछूतों की श्रेणी में डाल दी गई है. आदिवासी समाज को तो पूर्ण मनुष्य का दर्जा भी प्राप्त नहीं हुआ है. महिलाओं के लिए भी हिंदू समाज व्यवस्था में दोयम दर्जा निर्धारित है. आज के दिन भी, जबकि हमारा संविधान सबको बराबरी का अधिकार दे रहा है. आये दिन वंचित समाज के साथ होने वाले अमानुषिक व्यवहार की ख़बर हम रोज़ाना सुनते और पढ़ते हैं.

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