लाइव सिटीज, सेंट्रल डेस्क: पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता सह भाजपा प्रवक्ता अरविन्द कुमार ने कहा कि सरकार ने राज्य के गरिमा के साथ खिलवाड़ करने का कार्य किया है । सत्ता के मद में चूर मुख्यमंत्री ने अपने पद की गरिमा के प्रतिकूल, प्रभाव में लेकर चुनाव आयोग से चुनाव हेतु अधिसूचना जारी करवा दिया । महाधिवक्ता एवं चुनाव आयोग का परामर्ष था कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेष के आलोक में डेडिकेटेड आयोग का गठन कर चुनाव के पूर्व आयोग का अनुषंसा प्राप्त कर चुनाव की तारीखों की घोषणा करना न्याय संगत होगा, पर सरकार द्वारा चुनाव कराने की अनुषंसा कानून का उल्लंघन है ।
दूसरा पटना उच्च न्यायालय द्वारा चुनाव स्थगन का आदेष पारित करने के पश्चात् भी सरकार टाल-मटोल करती रही और बिना सोचे-समझे उच्च न्यायालय में पुर्नविचार याचिका दायर कर दी और पुनः उसे वापस ले लिया जो खुद हास्यास्पद है । जिसका राज्य सरकार को स्पष्ट करनी चाहिए की क्या बिहार सरकार के पटना उच्च न्यायालय में नियुक्त राजकीय अधिवक्ताओं पर विष्वास नहीं था जो राजकीय कोष से सर्वोच्च न्यायालय के वकील को बुलाकर बहस करायी गयी और वो भी केवल याचिका वापस लेने हेतु यह पटना उच्च न्यायालय के कार्यरत सरकारी अधिवक्ताओं का अपमान है साथ ही जनता के पैसे का दुरूपयोग है ।
जब न्यायालय से संचिका वापस लेनी थी और आयोग हेतु अधिसूचना जारी करनी थी तो फिर इस प्रकार का नाकारात्मक रवैया क्यों ? सरकार को स्पष्ट करनी चाहिए कि सरकारी खजाने की राषि के दुरूपयोग हेतु कौन जवाबदेह है । उच्चतम न्यायालय के आदेष के बावजूद चुनाव की घोषणा, उसके प्रबंधन हेतु किये गये खर्चे के साथ-साथ प्रत्याषियों द्वारा किये गये सैकड़ों करोड़ रू0 खर्चे का जिम्मेदार राज्य सरकार है, क्या राज्य सरकार प्रत्याशियों के खर्चे का भरपायी करेगी । उपरोक्त के अलावे राज्य सरकार क्या बता पायेगी की उच्चतम न्यायालय के वरीय अधिवक्ता विकास सिंह एवं मनिन्दर सिंह क्या महाधिवक्ता एवं विधि विभाग के अनुशंसा पर बिहार सरकार का पक्ष रखने को उपस्थित हुए ।
मुख्य न्यायाधीश द्वारा पारित आदेष में यह वर्णित है कि श्री आनंद किषोर, प्रधान सचिव नगर विकास एवं आवास विभाग के आदेष पर केश में बहस हेतु हाजिर हुए तो क्या बिना विधि विभाग या महाधिवक्ता के आदेष के बिना किसी अन्यत्र के वकील को राज्य सरकार की ओर से वकील के रूप में सम्मिलित किया जा सकता है ।
क्या बिहार सरकार द्वारा नियुक्त किये गये राजकीय अधिवक्ता में से कोई संचिका वापस लेने के लिए भी सक्षम नहीं है ? 2006 में गठित अत्यन्त पिछड़ा वर्ग आयोग को ही डेडिकेटेट आयोग का मात्र दर्जा दे देना और पार्टी के पदाधिकारियों को अध्यक्ष एवं सदस्य बना देना आयोग के गठन की विश्वसनियता पर प्रश्न चिन्ह उत्पन्न करती है ।
बिहार सरकार के पटना उच्च न्यायालय में नियुक्त राजकीय अधिवक्ता को दरकिनार कर सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता श्री विकास सिंह, मनिन्दर सिंह एवं इसी प्रकार राज्य चुनाव आयोग की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता दिनेष द्विवेदी को उच्चतम फीस का भुगतान करना, राज्य सरकार द्वारा जनता के टैक्स के पैसे का दुरूपयोग है एवं पटना उच्च न्यायालय में नियुक्त सरकारी वकीलों की मानहानी है । प्रेसवार्ता में मुख्य रूप से प्रेस पैनलिस्ट अरविन्द कुमार, प्रदेश मीडिया प्रभारी अशोक भट्ट एवं प्रवीण कुमार उपस्थित थे ।