लाइव सिटीज, पटना: जिले में कुपोषण के खिलाफ अभियान की शुरुआत की जायेगी। कुपोषित बच्चों को सुपोषित करने के उद्देश्य से सितंबर में पोषण माह का आयोजन किया जायेगा। 1 से 30 सितंबर तक राष्ट्रीय पोषण माह का आयोजन किया जायेगा। पूरे माह कुपोषण के खिलाफ तमाम गतिविधियों का आयोजन किया जायेगा। इस दौरान पटना का सबसे विश्वसनीय पारस एचएमआरआई हॉस्पिटल लोगों को पोषण की जरूरत और इसके महत्व को लेकर जागरूक कर रहा है। पारस हॉस्पिटल के चीफ डायटिशियन एवं विभागाध्यक्ष संजय मिश्रा का कहना है कि इस वर्ष पोषण माह का मुख्य फोकस महिला और बच्चे के स्वास्थ्य की बढ़ोतरी पर है। वह कहते हैं भारत में सभी लोगों के पास इतने संसाधन नहीं हैं कि वे किसी डायटिशियन या विशेष प्रकार का डायट चार्ट फॉलो कर सकें। ऐसे में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि हम जो भी खाएं वह भोजन अपने आप में संपूर्ण और पोषण से युक्त हो।
पोषण माह मनाने की परंपरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 मार्च 2018 को शुरू की। जिसे इस वर्ष 2022 में एक नई सोच और नए आयाम के साथ मनाया जा रहा है। पोषण माह खास तौर पर मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में पोषण के स्तर को सुधारने के लिए मनाया जाता है। इस वर्ष 2022 में राष्ट्रीय पोषण माह के चार बेसिक थीम यथा; महिला एवं स्वास्थ्य, बच्चा व शिक्षा, पोषण भी पढ़ाई भी, लैंगिक संवेदनशीलता के साथ जल संरक्षण व प्रबंधन एवं आदिवासी क्षेत्र में महिलाओं व बच्चों के लिए पारंपरिक खान-पान निर्धारित किये गए हैं। पारस हॉस्पिटल ने इस साल पोषण माह के दौरान ज्यादा से ज्यादा लोगों को जागरूक करने का लक्ष्य बनाया है।
नवजात के सुनहरे एक हजार दिन:
श्री मिश्रा पारस हॉस्पिटल में वर्षों से मरीजों को बेहतर आहार की सलाह देते रहे हैं। वह कहते हैं किसी भी नवजात के लिए उसके दो वर्ष तक का पोषण महत्वपूर्ण होता है। यह उनके शारीरिक और बौद्धिक विकास के लिए आवश्यक है। इस एक हजार दिनों में गर्भवती के वह नौ महीने भी आते हैं। प्रथम तीन महीनों में तो गर्भवती को अतिरिक्त पोषण की जरूरत नहीं होती पर दूसरी तिमाही में 150-200 कैलोरी तथा 12 ग्राम प्रोटीन की अतिरक्त आवश्यकता होती है। कैलोरी और प्रोटीन की यही मात्रा तीसरी तिमाही में 350 कैलोरी और 18 से 22 ग्राम बढ़ जाती है। किसी भी स्तनपान कराने वाली माताओं को 600 कैलोरी तथा 18-20 ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता भी अतिरिक्त होती है। छह महीने तक नवजात को सिर्फ मां का दूध देना है। इसके अतिरिक्त पानी या किसी अन्य तरह का तरल पदार्थ भी नहीं देना होता है। छह महीने के बाद सेमी सोलीड (अर्धठोस आहार), जैसे दाल का पानी, प्लेन खिचड़ी मैसा हुआ, साबुदाने की खीर से बढ़ते हुए हम एक वर्ष के बाद ठोस आहार देना चालू कर सकते हैं।
परंपरागत भोजन है सर्वश्रेष्ठ:
संजय मिश्रा कहते हैं कि खाने के संबंध में हमारी संस्कृति बहुत ही समृद्ध रही है। ग्रामीण परिवेश से दूरी और पश्चिमी संस्कृति से नजदीकी ने हमारी थाली से पोषक तत्वों को छीन लिया है। इस संबंध में मेरा सुझाव है कि हम अपने खाने में जिनता साबूत अनाज शामिल करेंगे उतना ही हम पोषक तत्वों से भरपूर रहेंगे। चना, अलसी, जौ, बाजरा, मड़ुआ, सोयाबीन, लाल साग, पालक का साग, नींबू, पपीता, अमरुद, दाल का सेवन अपनी थाली में हमेशा करें। साबूत अनाज हरेक नजरिए से हमारे शरीर के लिए फायदेमंद है। पारस हॉस्पिटल अपने सभी मरीजों को ऐसे आहार देने की सलाह देता है।
किशोरियों में पोषण का ख्याल जरूरी:
पारस हॉस्पिटल के चीफ डायटिशियन किशोरियों को कुरोषण से बचाने के लिए विशेष सलाह देते हैं। उनका कहना है कि किशोरियां, जिनकी उम्र 15 से 19 वर्ष है, सबसे ज्यादा एनिमिक पायी जाती हैं। ऐसे में हम उस पीढ़ी को कुपोषित देखते हैं जो आगे चलकर गर्भधारण करती हैं। इसके लिए उन्हें भी पोषण का समुचित ख्याल रखना चाहिए। उन्हें अपने खाने में दाल, साग और हरी सब्जी,सलाद, फल की अधिकता रखनी चाहिए।
कुपोषण भी हो सकता है थकान और हाइपोग्लेसेमिया का कारण:
पारस हॉस्पिटल के श्री मिश्रा कहते हैं कि थकान और हाइपोग्लेसेमिया यह दर्शाता है आपके शरीर में किसी न किसी रूप में पोषक तत्वों की कमी है। आप में प्रोटीन,कैल्शियम,आयरन की कमी न हो इसके लिए दाल खाइए। मछली, अंडा, पनीर, राजमा, सोयाबीन भी प्रोटीन का अच्छा स्रोत है। इसके अलावे जितने भी तरह के साग सब्जी हैं उनमें विटामिन और कैल्सियम प्रचूर मात्रा में होती है। अलसी ओमेगा 3 और फैटी एसिड का बड़ा और सस्ता स्रोत है। इसके अलावे धनिया पत्ते की चटनी और टमाटर भी पोषण से भरपूर है। हमें बस अपना नजरिया परंपरागत भोजनों पर एकत्र करना है और सभी फूड ग्रूपस जैसे सम्पूर्ण अनाज, दाल, मौसमी फल और सब्जी, दूध – दही या मांसाहार को प्राथमिकता देते हुए अपने प्रति दिन के खाने मे समायोजित करने से अनेकों बीमारी से बचा जा सकता है।