लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बिहार में तीसरे चरण का मतदान होना है. तीसरे चरण में बिहार के 5 सीटों पर चुनाव होना तय हुआ है. बिहार में तीसरे चरण में झंझारपुर, सुपौल, अररिया, मधेपुरा और खगड़िया में वोटिंग होनी है. इन सभी सीटों पर एनडीए (3 पर जदयू) का कब्जा है.सबसे ज्यादा चर्चा का विषय खगड़िया लोक सभा बना हुआ है. 1991 के बाद सीपीआई (एम) चुनाव लड़ने जा रही है.कभी कम्युनिस्ट राजनीति का गढ़ रहा बेगूसराय और खगड़िया में फिर से लाल सलाम की राजनीति फले फुलेगा? चलिए जानते हैं..
कई सालों के बाद लोक सभा चुनाव 2024 में खगड़िया में लाल झंडों का अंबार नजर रहा है. वैसे तो राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन का हिस्सा वाम दल बिहार की राजनीति में हाशिये पर है. लेकिन इस लोकसभा चुनाव में खगड़िया-बेगूसराय बेल्ट में इसकी मौजूदगी दर्ज हो रही है.सीपीआई (एम) खगड़िया से चुनाव मैदान में है. जो 1991 के बाद पहली बार राज्य में संसदीय चुनाव लड़ रहा है और सीपीआई पड़ोसी बेगूसराय को जीतने की कोशिश कर रही है. हालांकि सीपीआई पिछले चुनाव में भी बेगूसराय से ताल ठोक चुकी है. बेगूसराय जिसे 1950 के दशक के अंत से 1990 के दशक के अंत तक अपने सक्रिय कम्युनिस्ट आंदोलन के कारण कभी “बिहार का लेनिनग्राद” भी कहा जाता था. सीपीआई (एमएल) नालंदा, आरा और काराकाट निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ रही है.
कैसर के कंधों पर जिम्मेदारी
खगड़िया में, जहां तीसरे चरण में 7 मई को मतदान होना है, मुकाबला सीपीआई (एम) के संजय कुमार और चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के उम्मीदवार राजेश वर्मा के बीच है. स्थानीय मुद्दों के अलावा, ओबीसी कुशवाह समुदाय से आने वाले संजय कुमार को मुस्लिमों और यादवों से समर्थन मिलने की उम्मीद है. जो आरजेडी का पारंपरिक एम-वाई वोट बैंक है. यहां महागठबंधन का उद्देश्य कुशवाहों के वोटों का एक बड़ा हिस्सा हासिल करना है. जो निर्वाचन क्षेत्र में तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला जाति है. खगड़िया के लगभग 18 लाख मतदाताओं में से, अनुमानित तीन लाख मुस्लिम हैं. इसके बाद 2.5 लाख यादव और एक-एक लाख कुशवाह और मल्लाह समुदाय के वोटर हैं. सबसे निर्णायक मत मल्लाह वोटरों का है जिन्हें अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के रूप में वर्गीकृत किया गया है.
इस बार संजय कुमार के पक्ष में लड़ रहे मुस्लिम वोट लाने की उम्मीद मौजूदा सांसद चौधरी महबूब अली कैसर के कंधों पर है.
बिहार में भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के एकमात्र मुस्लिम सांसद थे. जो लोजपा (रामविलास) द्वारा टिकट देने से इनकार किए जाने के बाद राजद में शामिल हो गए थे. खगड़िया से दो बार सांसद रह चुके कैसर ने कहा
“प्रचार अभियान में शामिल होने के मेरे फैसले ने मुकाबले को और मजबूती दी है, मुझे टिकट नहीं दिए जाने से साथी मुसलमानों में दुख की भावना है, एनडीए को हराना अब एकमात्र मकसद है.”
महबूब अली कैसर
चुनाव प्रचार अभियान के दौरान 58 वर्षीय संजय कुमार, जिनके पिता योगेंद्र सिंह 2000 से 2005 तक खगड़िया सदर के विधायक थे. संजय ने स्थानीय मुद्दों के साथ-साथ “संविधान और लोकतंत्र के लिए खतरा” जैसे मुद्दों को उठा रहे हैं. उन्होंने हाल ही में मिड-डे मील रसोइयों को मिलने वाले मासिक मानदेय को बढ़ाने के लिए एक अभियान चलाया था. एक और कारक है जो कुमार के पक्ष में काम कर सकता है. वह विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के नेता मुकेश सहनी हैं जो अब महागठबंधन के साथ जुड़ गए हैं.
लोजपा (आर) की क्या है रणनीति
लोजपा उम्मीदवार राजेश के पक्ष में भी समीकरण मजबूत है, एनडीए के ईबीसी और गैर-यादव और ध्रुवीकरण का वोट, साथ ही दलितों वोटरों का समर्थन, जो लोजपा का पारंपरिक आधार है. नरेंद्र मोदी सरकार की मुफ्त राशन योजना इस क्षेत्र के गरीब लोगों के बीच लोकप्रिय है. यह एक ऐसा कारक बन सकता है जो भागलपुर के पूर्व मेयर राजेश वर्मा के पक्ष में चुनाव को झुका सकता है, जो ओबीसी वैश्य समुदाय से हैं.
हालांकि उनके प्रतिद्वंद्वियों ने उन्हें बाहरी करार देने की कोशिश की है. बार बार उन्हें बाहरी बोला जा रहा है. वर्मा ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया और मुकाबले में जीत के लिए नरेंद्र मोदी फैक्टर पर भरोसा कर रहे हैं. राजेश वर्मा कहते हुए दिखाई दे रहे हैं कि “नरेंद्र मोदी ही हर जगह फैक्टर हैं मेरे विरोधियों को सामाजिक गणित लगाने दीजिए, यह ‘लाभार्थी’ योजनाएं और मोदी का व्यक्तित्व है जो मेरे विरोधियों पर भारी पड़ेगा.”
पिछले तीन चुनावों में एनडीए ने भारी एम-वाई फैक्टर के बावजूद जीत हासिल की है. निश्चित रूप से यह एक कठिन मुकाबला है, नरेंद्र मोदी फैक्टर को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए. खगड़िया में मोदी मतदाता चुप रहते हैं”