लाइव सिटीज, पटना: बिहार में आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 50 फीसदी से 65% रिजर्वेशन करने के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. इस मामले में चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने गौरव कुमार व अन्य की जनहित याचिकाओं पर सुनवाई की है. कोर्ट ने नए आरक्षण कानून पर रोक लगाने से इंकार किया है. राज्य सरकार को 12 जनवरी 2024 तक कोर्ट को जवाब देने का निर्देश दिया है. इस मामले में अगली सुनवाई जनवरी 2024 में होगी.
याचिका में जाति आधारित सर्वेक्षण को अधूरा और पक्षपाती बताकर मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला बताया गया है. याचिकाकर्ता की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि कोटा बढ़ोतरी कानून में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्देशों का उल्लंघन भी किया गया है. सर्वोच्च अदालत की संवैधानिक पीठ ने तय किया है कि आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं बढ़ाई जा सकती.
वहीं दूसरी ओर ये भी दलील दी गई है कि 2023 का संशोधित अधिनियम जो राज्य सरकार की ओर से पारित किया गया है वह भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. क्योंकि ये सरकारी नौकरियों में समान अधिकार और भेद भाव से संबंधित मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन करता है.
बिहार में 65 प्रतिशत आरक्षण लागू किया गया है. 21 नवंबर, 2023 को गजट में अधिसूचना जारी की जा चुकी है. जनहित याचिका में कहा गया है कि ये संशोधन जातीय सर्वेक्षण को आधार बनाकर किया गया. पिछड़ी जातियों का प्रतिशत इस जातिगत सर्वेक्षण में 63.13 प्रतिशत है, इसलिए इनके लिए आरक्षण 50 प्रतिशत से बढ़ा कर 65 फीसदी कर दिया गया है.
बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ से ज्यादा की है. इसमें 27% अन्य पिछड़ा वर्ग और 36% अत्यंत पिछड़ा वर्ग है. इस तरह बिहार में ओबीसी की कुल आबादी 63% है. वहीं, अनुसूचित जाति की आबादी 19% और अनुसूचित जनजाति की आबादी 1.68% है. जबकि, सामान्य वर्ग का आंकड़ा 15.52% है. बिहार में पहले से 50% आरक्षण लागू है, लेकिन जातीय गणना की रिपोर्ट आने के बाद नीतीश सरकार ने उसे बढ़ाकर 65% कर दिया है.