लगभग 3 साल पहले बिहार में जब एनडीए की सरकार थी तब विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने पूरे बिहार में जाति आधारित जनगणना कराने की मांग की थी. हालांकि कुछ समय बाद बिहार में सरकार पलट गई. सरकार बदलने के बाद तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार की पार्टी के साथ बिहार में सर्वदलीय बैठक के बाद पूरे बिहार में जाति जनगणना कराने का निर्णय हुआ.बिहार में भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन एनडीए और महागठबंधन दोनों ही जाति-आधारित सर्वेक्षण को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे थे.
जाति अधारित जनगणना से पता चला कि बिहार में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (ईबीसी) राज्य में सबसे बड़ा सामाजिक समूह है. यह कुल आबादी का 36.1% है इसके आधार पर, जेडी(यू) के नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार ने अनुसूचित जातियों (एससी), अनुसूचित जनजातियों (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) और ईबीसी के लिए आरक्षण का कोटा 50% से बढ़ाकर 65% करने की घोषणा की.
नीतीश कुमार वापस एनडीए में
जनवरी 2024 में नीतीश कुमार फिर से एनडीए में वापस आ गए. जाति सर्वेक्षण और राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना की मांग भी ठंड बस्ता में चला गया. जमीनी स्तर पर, जाति जनगणना की मांग को कोई समर्थन नहीं मिल रहा है. क्योंकि स्थानीय स्तर पर लोग उम्मीदवारों और उनकी जातियों, कल्याणकारी उपायों, विदेशों में भारत की छवि, बेरोजगारी और महंगाई पर चर्चा कर रहे हैं. नीतीश कुमार जिन्होंने जाति सर्वेक्षण का समर्थन किया था और पिछले तीन सालों से इसके इर्द-गिर्द अभियान चलाया था. उन्होंने भी इसका कोई ज़िक्र नहीं किया है. नीतीश कुमार अपने आजमाए हुए विषय “कुशासन बनाम सुशासन” पर फिर वापस आ गए हैं.
EBC वोटरों का रूझान किधर?
समाचार वेबसाइट इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, मुंगेर में जेडी(यू) के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “मुंगेर में ईबीसी वोट बहुत है. हम जानते हैं कि कुछ को छोड़कर, उनमें से ज़्यादातर पीएम मोदी के नाम पर वोट करेंगे. नीतीश कुमार के भाषण इस तरह से तैयार किए जाते हैं कि वे लालू प्रसाद-राबड़ी देवी के शासन की तुलना नीतीश कुमार के ‘सुशासन’ से कर सकें, जो कुशासन और नरसंहार से भरा हुआ था. हम जानते हैं कि यह घिसा-पिटा है, लेकिन यह अभी भी काम कर रहा है.”
बातचीत से पता चला कि लोग लाभार्थी योजनाओं से अभी भी प्रभावित हैं पटना के एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा, “2014 से, ईबीसी ने बड़े पैमाने पर एनडीए को वोट दिया है. लेकिन मुकेश साहनी जैसे नेता गलत धारणा के शिकार हैं कि ईबीसी उनके साथ हैं. वास्तविकता यह है कि 130 से अधिक ईबीसी जातियाँ हैं, और उनमें से अधिकांश एनडीए की लाभार्थी योजनाओं से आकर्षित हैं.”