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जाति और आरक्षण का मुद्दा गरमाया : नीतीश कुमार ने ‘भीम संसद’ रथ को किया रवाना,जानिए इस रथ का क्या है मकसद..

लाइव सिटीज, पटना: बिहार में जातीय गणना के आंकड़े जारी करने के साथ ही देशभर की राजनीति इस मुद्दे पर गरम है.विपक्षी दलों की INDIA गठबंधन जाति और और आरक्षण के मुद्दे को हवा दे रही है,कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बिहार की तरह ही दूसरे राज्यों में भी जातीय गणना कराने की घोषणा की है.

वहीं जातीय गणना का विरोध करने वालों पर आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने करार हमला किया है और उनपर जाति के नाम पर भेदभाव को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है.इसके साथ ही बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने .’संविधान बचाओ आरक्षण बचाओ देश बचाओ’ रख को रवाना किया है.यह रथ भीम संसद के नाम से निकाली गयी है जो पूरे बिहार का भ्रमण करेगी.

बतातें चलें कि भीम संसद का आयोजन 5 नवंबर को पटना के वेटनरी कॉलेज में आयोजित किया जा रहा है.इस संसद में बड़े नेता शामिल होंगे और करीब एक लाख लोगों को जुटाने का लक्ष्य है. इस संसद के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए पूरे बिहार में रथ निकाला गया है.इस रथ को खुद सीएम नीतीश कुमार ने रवाना किया है.मुख्यमंत्री आवास में आयोजित कार्यक्रम में नीतीश कुमार के साथ ही मंत्री भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी, एससी एसटी कल्याण मंत्री रत्नेश सदा,मद्य निषेध मंत्री मंत्री सुनील कुमार समेत कई अन्य जनप्रतिनिधि मौजूद थे.इस रथ का मुख्य थीम .’संविधान बचाओ आरक्षण बचाओ देश बचाओ’ है

बताते चलें कि लालू प्रसाद यादव ने जातीय गणना का विरोध करने वालों के खिलाफ करार प्रहार किया है.उन्हौने जाति के आधार पर भेदभाव को कैंसर बीमारी माना है और विरोधियों पर कैंसर का इलाज सिर दर्द की दवाई से करने का आरोप लगाया है..लालू यादव ने सोसल मीडिया X पर लिखा कि “जातिगत जनगणना के विरुद्ध जो भी लोग है वो इंसानियत, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक बराबरी तथा समानुपातिक प्रतिनिधित्व के ख़िलाफ है। ऐसे लोगों में रत्तीभर भी न्यायिक चरित्र नहीं होता है।किसी भी प्रकार की असमानता एवं गैरबराबरी के ऐसे समर्थक अन्यायी प्रवृत्ति के होते है जो जन्म से लेकर मृत्यु तक केवल और केवल जन्मजात जातीय श्रेष्ठता के आधार एवं दंभ पर दूसरों का हक खाकर अपनी कथित श्रेष्ठता को बरकरार रखना चाहते है।कैंसर का इलाज सिरदर्द की दवा खाने से नहीं होगा।”

एक अन्य ट्वीट में लालू ने लिखा है कि “क्या कोई भी संवेदशील व्यक्ति यह मान सकता है सारे मनुष्य बराबर नहीं हैं? साथ बैठने-उठने, खाने-पीने, पढ़ने-लिखने, काम करने से किसी को क्या आपत्ति हो सकती है? यह व्यवस्था प्राकृतिक नहीं है। जाति यथार्थ है तभी तो वैवाहिक विज्ञापनों में आप सबसे अधिक शिक्षित और संभ्रांत वर्गों के ही इस्तेहार देखते हैं.

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