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केजरीवाल ही दिल्ली के असली बॉस, केंद्र और दिल्ली सरकार विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

लाइव सिटीज पटना: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण को लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच विवाद पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया. प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा यह फैसला सुनाया गया. कोर्ट ने बहुमत से यह फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों की तैनाती और तबादले का अधिकार दिल्ली सरकार को होना चाहिए. यानी उपराज्यपाल नहीं मुख्यमंत्री ही दिल्ली का असली बॉस होगा. कोर्ट ने कहा सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि जैसे विषयों के अलावा सेवाओं पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण है.

दरअसल केंद्र सरकार ने 2021 में गवर्नमेंट ऑफ एनसीटी ऑफ दिल्ली एक्ट (GNCTD Act) में संसोधन किया था. इसमें दिल्ली के उपराज्यपाल को कुछ और अधिकार दे दिए गए थे. आम आदमी पार्टी ने इसी कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इसी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सुनाया. पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति एम.आर. शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा भी शामिल हैं. पीठ ने केंद्र और दिल्ली सरकार की ओर से क्रमश: सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी की पांच दिन दलीलें सुनने के बाद 18 जनवरी को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था. संविधान पीठ का गठन, दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं पर केंद्र और दिल्ली सरकार की विधायी एवं कार्यकारी शक्तियों के दायरे से जुड़े कानूनी मुद्दे की सुनवाई के लिए किया गया था.

दिल्ली में अफसरो के ट्रांसफर-पोस्टिंग के अधिकार को लेकर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि अफसरों की पोस्टिंग और ट्रांसफर का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा. फैसला सुनाने से पहले सीजेआई ने कहा कि ये फैसला सभी जजों की सहमित से लिया गया है. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि पुलिस, पब्लिक आर्डर और लैंड संबंधित शक्तियां केंद्र के पास होगी. फैसला पढ़ने से पहले सीजेआई ने कहा कि ये बहुमत का फैसला है. सीजेआई ने फैसला सुनाने से पहले कहा कि दिल्ली सरकार की शक्तियों को सीमित करने को लिए केंद्र की दलीलों से निपटना आवश्यक है. इसके अलावा उन्होंने कहा कि ये मामला सिर्फ सर्विसेज पर नियंत्रण का है.

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पढ़ते हुए कहा कि दिल्ली विधानसभा के सदस्य, दूसरी विधानसभाओं की तरह सीधे लोगों की तरफ से चुने जाते हैं. लोकतंत्र और संघीय ढांचे के सम्मान को सुनिश्चित किया जाना चाहिए. हालांकि, कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 239AA दिल्ली विधानसभा को कई शक्तियां देता है, लेकिन केंद्र के साथ संतुलन बनाया गया है. संसद को भी दिल्ली के मामलों में शक्ति हासिल है. कोर्ट ने कहा कि उपराज्यपाल की कार्यकारी शक्ति उन मामलों पर है जो विधानसभा के दायरे में नहीं आते. लोकतंत्र में चुनी हुई सरकार को शक्ति मिलनी चाहिए. अगर राज्य सरकार को अपनी सेवा में तैनात अधिकारियों पर नियंत्रण नहीं होगा तो वो उनकी बात नहीं सुनेंगे. यह बात ध्यान देने की है कि दिल्ली सरकार ने भी कोर्ट में यही दलील दी थी.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातें

  • अधिकारियों की तैनाती और तबादले का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा.
  • चुनी हुई सरकार के पास प्रशासनिक सेवा का अधिकार होना चाहिए. अगर चुनी हुई सरकार के पास प्रशासनिक व्यस्था का अधिकार नहीं होगा, तो फिर ट्रिपल चेन जवाबदेही पूरी नहीं होती.
  • उपराज्यपाल को सरकार की सलाह माननी होगी.
  • पुलिस, पब्लिक आर्डर और लैंड का अधिकार केंद्र के पास रहेगा.
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