लाइव सिटीज, पटना: राजधानी पटना के रवींद्र भवन में आयोजित युगपुरुष नाट्योत्सव के तीसरे दिन पद्मश्री शेखर सेन की एकल नाट्य प्रस्तुति रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास का जीवनचरित्र मंच पर सजीव हो उठा। मानस की सुरभीगी चौपाइयों ने लोगों को रोमांचित किया। पद्मश्री शेखर सेन के भावपूर्ण अभिनय का हर किसी ने आनंद लिया और गोस्वामी तुलसीदास के बारे में वैसे कई पहलुओं से लोग रूबरू हुए जिसे पहले वे नहीं जानते थे। शेखर सेन के गायन, संगीत और अभिनय की जुगलबंदी ने सबका ध्यान खींचा।
रवीन्द्र भवन में आयोजित शेखर सेन ने ही इस नाटक को लिखा है और वह अकेले ही इसे प्रस्तुत भी करते हैं । मंच पर बने पर्दे पर कथानक के अनुसार दृश्य के जरिए उभरते हुए आलोक बिम्ब सुंदर लगे। उन्होंने पूरे मंचन में 52 बार से अधिक गायन किया। बाल्यकाल से लेकर रामबोला और उसके बाद तुलसी नाम पड़ने का कारण, राम को 14 वर्ष वनवास का कारण, पत्नी रत्नावली से मिले ज्ञान समेत मानस रचना के प्रसंगों को बड़ी जीवंतता से प्रस्तुत किया।
मंच पर आते ही उन्होंने कहा कि जय श्रीराम मैं तुलसी इस अवसर पर बिहार आर्ट थियेटर के अध्यक्ष आर के सिन्हा ने कहा कि तीन दिनों से जैसी नाट्य प्रस्तुतियां हुई है ये सबकी आँखे खोलता है। ‘युगपुरुष नाट्योत्सव’ के तीसरे दिन गोस्वामी तुलसीदास का मंचन हुआ जिस प्रकार से प्रस्तुति की गई है वो वाकई काबिले तारीफ़ है। एक कलाकार पहले लिखता है फिर उसे सजाता संवारता है और अंत में आपसे वाहवाही भी ले जाता है। वैसे ही रंगमंच के समर्पित कलाकार है पद्मश्री शेखर सेन। हम उन्हें राजधानी के दर्शकों की ओर से बधाई देते हैं और उनके हजारों प्रस्तुतियों के लिए बधाई देते हैं।
पद्मश्री शेखर सेन ने कहा है कि हर व्यक्ति में बहुमुखी प्रतिभा होती है। बिहार में दस लाख से ज्यादा कलाकार हैं उनक प्रतिभा को उभार दिया जाए, तो वो अपनी पहचान बना सकेंगे। हर किसी में कोई न कोई कलाकार छिपा होता है। बिहार के कलाकारों को दुनिया देखेगी और उन्हें वो सम्मान देगी जो उन्हें बहुत पहले मिल जाना चाहिए था।
मंचन से पूर्व पत्रकार वार्ता में नाट्य कलाकार और गायक सेन ने कहा कि नाटक करना कलाकारी है, कलाबाजी नहीं। यह साधना है, चमत्कार नहीं। तुलसी, कबीर, सूरदास, स्वामी विवेकानंद जैसे चरित्रों पर एकल प्रस्तुतियां देने में माहिर सेन ने कहा कि वे कला के संरक्षण में लगे हैं। फिल्मों की बजाय लोगों से नाटक देखने की अपील करते हुए कहा कि नाटकों के कद्रदान विदेश में भी हैं। भारत के तुलसी जैसी चरित्र पर नाटक वहां लोकप्रिय हैं। एक दिन मैंने सोचा मेरे कंपोज किये एलबमों की गिनती कितनी भी हो जाये लेकिन उससे फर्क क्या पड़ेगा। लिहाजा कुछ ऐसा करना होगा जो आत्मा को छू सके। लिहाजा मैने नाटक की शुरूआत की। मैने पहला नाटक तुलसी 1997 में लिखा और वो एक्ट हुआ 1998 में। उसके बाद चली ये यात्रा आज तक निर्विघ्न चली आ रही है। देश के अलावा मेरे विदेशों में ढेर सारे शो हुए हैं अमेरिका में सौ से ज्यादा शो हो चुके हैं।
इसके अलावा इंगलैंड, बेल्जियम, हांगकांग, सिंगापौर, इंडोनेसिया, मॉरिशस, दक्षिण अफ्रिका, नाइजीरिया, सूरीनाम, वेस्टंडीज तथा शारजहां आदि देशों में कई शोज हो चुके हैं। मेरी मां बचपन में रामचरित मानस पढ़ा करती थीं, मैं भी उनके साथ गाता था, अभिनेता बनने की तो मैने कल्पना तक नहीं की थी। सच पूछिये तो मैं वैसा कुछ नहीं बनना चाहता था मैं तो रायपुर से मुंबई फिल्मों का संगीतकार बनने आया था, मैं गायक भी नहीं बनना चाहता, अभिनेता बनने का तो कभी सोचा तक नहीं था। अब पिछले पचीस साल से मेरे घर की रसोई नाटकों से ही चल रही है।
डॉक्टर शंकर दयाल , अनिल सुलभ , निर्मल शंकर श्रीवास्तव ,ज्ञान मोहन ,इस्कॉन के नंद गोपाल दास जी ,अरुण जैन , संस्कार भारती के प्रकाश जी ,अभिजीत कश्यप , प्रसिद्ध चिकित्सक अजीत प्रधान , अशोक घोष सहित कई रंगकर्मी , स्कूल कॉलेज के बच्चो के अलावा आम जनों ने नाट्य देखकर अभिभूत हुए।श्री सिन्हा द्वारा सभी कलाकारों का सम्मानित किया गया।