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बिहार में भ्रष्टाचार पर बड़ी कार्रवाई, करोड़ों रुपए के गबन का आरोपी पूर्व आइएएस एमएस राजू गिरफ्तार

लाइव सीरीज, सेंट्रल डेस्क: सरकारी राशि में गबन और भ्रष्टाचार के आरोप में निगरानी की विशेष अदालत ने भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी एसएम राजू की नियमित जमानत याचिका रद करते हुए उन्हें 30 जनवरी तक के लिए बेउर जेल भेज दिया है.

बताया जा रहा है कि महादलित विकास मिशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के पद पर रहते हुए एमएस राजू ने विभिन्न योजनाओं के लिए आयी करोड़ों रुपये की राशि का गबन किया है. वर्ष 2017 में पूर्व आइएएस के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था. इसके बाद से लगातार जांच चल रही थी. इस मामले में छह लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया है. इसमें चार लोग आइएएस अधिकारी

हैं.

जांच के दौरान एमएस राजू पर कई आरोप लगे थे. साल 2017 में जब एसएम राजू पटना में बिहार महादलित विकास मिशन के तत्कालीन मुख्य कार्यकारी अधिकारी के पद पर थे, उनके खिलाफ सरकारी राशि के गबन और भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया गया था. इसी मामले में राजू ने बुधवार को पटना के स्पेशल कोर्ट में सरेंडर कर दिया था. तब निगरानी के विशेष न्यायाधीश मनीष द्विवेदी की कोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सरेंडर करने के साथ ही उनको 20 जनवरी तक के लिए अंतरिम जमानत दिया था. विजिलेंस के मुताबिक सभी आरोपियों ने महादलित विकास मिशन के तहत सरकारी योजनाओं में करीब दो करोड़ रुपए का घोटाला किया है.

जांच अधिकारी ने रिपोर्ट में कहा था कि कि मिशन कार्यालय ने स्पोकन इंग्लिश सहित विभिन्न 20 ट्रेड में प्रशिक्षण देने के लिए विज्ञापन जारी किया था. इसमें 203 प्रस्ताव आये थे. दलित बच्चों को अंग्रेजी सिखाने के लिए छह एजेंसी चयनित हुईं, लेकिन ब्रिटिश लिंग्वा को 13 जिलों में काम दिया गया. इंडियाकन व आइआइआइएम लि को 11-11 और बाकी तीन कंपनियों को एक एक जिलों में काम मिला. ब्रिटिश लिंग्वा को लाभ पहुंचाने के लिए सेवा शर्तों में बार- बार बदलाव कर सरकारी पैसे का बंदरबांट किया गया.

कंपनी ने एक भी बैच का प्रशिक्षण पूरा नहीं किया. फिर भी 25 की जगह 85% राशि भेज दी गयी. वर्ष 2012-13 के प्रशिक्षक, प्रशिक्षणार्थी और रिजल्ट शीट भी फर्जी पाये गये थे. एजेंसियों द्वारा अपलोड किये गये ऑनलाइन डाटा को अधिकारी या एजेंसी द्वारा देखा जा सकता था. छात्रों की सूची के साथ-साथ उनकी उपस्थिति हार्ड कॉपी से मिलाने के लिए सुझाव लिखित रूप में था. इसके बाद भी भुगतान करने वाले पदाधिकारी ने रिपोर्ट और सुझाव को नजरअंदाज किया.

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