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लालू यादव पहुंचे शिवानंद तिवारी के आवास : उनकी पत्नी बिमला देवी को दी श्रद्धांजलि

लाइव सिटीज, पटना: राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद शिवानंद तिवारी की धर्मपत्नी विमला देवी का सोमवार को निधन हो गया. विगत 15 मई को उन्हें तबीयत बिगड़ने पर राजधानी स्थित एक बड़े अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उनका दाह संस्कार मंगलवार को होगा. वर्ष 1965 की 13 मई को शिवानंद तिवारी और विमला देवी परिणय सूत्र में बंधे थे. मालूम हो कि लगभग 11 वर्ष पहले उनकी किडनी ट्रांसप्लांट की गई थी. 

वहीं आज सुबह बिहार के पूर्व सीएम और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रयास यादव पूर्व सांसद शिवानंद तिवारी के आवास पहुंचे और उनकी पत्नी बिमला देवी को श्रद्धांजलि दी.लालू प्रसाद यादव ने मृत बिमला देवी को पुष्प अर्पित करते हुए नमन किया.

बताते चलें कि बिमला देवी को 15 मई को उनको पारस अस्पताल में इमरजेंसी में भर्ती कराया गया था और सोमवार को उनका निधन हो गया.उनके निधन की सूचना खुद शिवानंद तिवारी ने सोसल मीडिया के जरिए दी थी.निधन की सूचना पुर सीएम नीतीश कुमार ,डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव समेत कई नेताओं ने दुख जताते हुए श्रद्धांजलि दी थी.

वहीं अस्पताल में बिमला देवी के भर्ती कराये जाने के बाद शिवानंद तिवारी ने सोसल मीडिया पर एक पोस्ट लिखा था कि जिसमें उन्हौने बिमला देवी से 1965 में हुए शादी और उनके साथ बिताये खट्टे मीठे अऩुभवों को शेयर किया था.शिवानंद तिवारी ने लिखा कि हमलोगों का विवाह 1965 में हुआ था. निठाह गंवई लड़की. पढ़ाई लिखाई ना के बराबर. जबकि स्कूल दरवाज़े पर था. लेकिन उन दिनों गाँवों में ब्राह्मण परिवार की लड़कियों को स्कूल भेजना मर्यादा के खिलाफ माना जाता था. हमारा गवना हुआ था. उसके बाद ही मुझे उनका दीदार हुआ था. लंबी कहानी है.

शिवानंद तिवारी ने लिखा कि जीवन भर लड़ता रहा. शुरुआत बाबूजी से हुई थी. शुरुआती राजनीति में किशन पटनायक का मुरीद हो गया. बाद में चुनावी राजनीति में नीतीश और लालू के साथ ही रहा. कभी इधर कभी उधर. लेकिन सपना में भी भाजपा या कांग्रेस में जाने का ख़्याल नहीं आया . बाबूजी ने मुझे तोड़ने का बहुत प्रयास किया. घर से एक से अधिक बार निकाला गया. पितृ सत्ता के खिलाफ ही मेरे संघर्ष की शुरुआत हुई थी. अंततोगत्वा किसी भी सत्ता के सामने सर उठा कर ही खड़ा रहने का स्वभाव बन गया.

सर उठा कर जीने की क़ीमत चुकानी पड़ती है. वह क़ीमत आप अकेले नहीं चुकाते हैं. परिवार को भी चुकाना पड़ता है. लेकिन बिमला जी ने कभी मेरे फ़ैसले का विरोध नहीं किया. बहुत झेला. लेकिन कभी शिकायत नहीं की. परिवार चलाने के लिए कितना पापड़ मुझे बेलना पड़ा ! उसकी अलग कहानी है.

भारतीय राजनीति में नेता भगवान बन जाता है. उसकी अपेक्षा रहती है कि उनके सामने सबका सर झुका रहे. मैंने कभी किसी के सामने सर नहीं झुकाया. बिमला जी ख़ुद बहुत ज़्यादा स्वाभिमानी थीं. ठान लिया तो पीछे कहाँ हटना. कितना झंझट हुआ हमलोगों में ! लेकिन कहीं मेरी उपेक्षा नहीं हो. बाल बच्चों द्वारा भी नहीं. इस पर वे बराबर सचेत रहीं. बिमला जी अनूठी महिला थीं. उन्होंने मेरे जीवन को समृद्ध किया. मेरे संघर्ष को बल दिया

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