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नेत्रदान महादान, प्रकृति के सबसे बड़ी धरोहर है आंख, आंखों के बिना हमारा जीवन अधूरा

लाइव सिटीज, पटना: नेत्रदान महादान है। मेरी आंखें किसी नेत्रहीन को देखने की शक्ति प्रदान करेगी यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है। एक जिम्मेदार पद पर होने के नाते मेरा यह कर्तव्य है कि मैं अपने कार्यों से लोगों को समाज और लोगों के प्रति संकल्पित रहने के लिए प्रेरित करूं।

मेरी आंखें किसी नेत्रहीन के जीवन में उजाला ला सके इससे बड़ी बात मेरे लिए और कुछ नहीं हो सकती है। मैंने अपना जीवन अपनी जनता और उनकी सेवा के लिए समर्पित किया है। जनप्रतिनिधि के तौर पर यह नेत्रदान मेरे लिए बेहद महत्वपूर्ण है जो समाज में इस महादान के पक्ष में एक सकारात्मक संदेश देगा। लोग बड़ी संख्या में नेत्रदान के लिए जागरूक होंगे और आगे चलकर यह नेत्रहीनों के लिए वरदान साबित होगा।

आंखें प्रकृति की सबसे सुंदर, अनमोल और अमूल्य उपहार व धरोहर हैं। आंखों के बिना हमारा जीवन अधूरा व बेरंग है। आंखें हैं, तो जहान है, वरना सब वीरान है। आंखें मानव शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। मानव शरीर में पांच ज्ञानेन्द्रियां हैं, आंख, कान, नाक, जीभ और त्वचा। इनसे ही कोई व्यक्ति सौंदर्य, रस, गंध, स्पर्श व स्वाद महसूस करता है। आचार्य चाणक्य ने आँखों को सभी इंद्रियों से उत्तम बताया है।

‘सर्वौषधीनामममृतं प्रधानं सर्वेषु सौख्येष्वशनं प्रधानम्’, सर्वेन्द्रियाणां नयनं प्रधानं सर्वेषु गात्रेषु शिरः प्रधानम्’ अर्थात् सभी औषधियों में अमृत प्रधान है, सभी सुखों में भोजन प्रधान है, सभी इंद्रियों में आँखे मुख्य हैं और सभी अंगों में सिर महत्वपूर्ण है।मृत्यु के पश्चात आंखों को जलाने की बजाए आंखों के दान से अगर किसी नेत्रहीन व्यक्ति की बेरंग जीवन में रंग और रोशनी आती है तो इससे बड़ा पुण्य-परोपकार की बात क्या हो सकती है।

महर्षि दधीचि ने भगवान इन्द्र के मांगने पर अपने शरीर की हड्डियाँ, भगवान श्री कृष्ण के मांगने पर वीर बर्बरीक ने अपना शीश व विश्वामित्र के माँगने पर राजा हरिश्चन्द्र ने अपना सम्पूर्ण राज्य दान कर दिया था। राजा शिवि ने कबूतर की रक्षा के लिए अपने शरीर का मांस तक काट कर तराजू में रख दिया था। यह सभी उदाहरण हमें मानव जीवन के कर्मों और उसके निर्वाहन का तरीका बताते हैं।

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने मनुष्य को दूसरों की भलाई के लिए तत्पर रहने के लिए ठीक ही कहा है कि, ‘वही पशु प्रवृत्ति है कि आप-आप ही चरे, वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे’।

आज नेत्रदान करके मुझे तसल्ली मिली, यह अहसास हुआ कि मेरा जीवन लोगों को समर्पित है और मैं जब तक जीवित रहूंगा तब तक अपनी जनता की सेवा में समर्पित रहूंगा। मेरी जनता मेरी ताकत है।आज इस मौके पर IGIMS के नेत्र विभाग के प्रमुख डॉ. विभूति प्रसाद सिन्हा जी और IGIMS नेत्र विभाग के प्रोफेसर डॉ. निलेश मोहन जी मौजूद रहे।

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