लाइव सिटीज, पटना: लोक आस्था के चार दिवसीय महापर्व छठ का दूसरा दिन खरना के नाम से जाना जाता है. यह दिन छठ व्रती के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इसी दिन से सूर्य उपासना के कठिन व्रत की शुरुआत होती है. इस दिन व्रती सुबह से निर्जल उपवास पर होते हैं. सूर्यास्त के बाद व्रती निर्जल उपवास तोड़कर प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसे बाद में पूरे परिवार और समाज के बीच प्रसाद को बांटा जाता है.
खरना का अर्थ होता है “शुद्धिकरण और आत्मसंयम”. यह छठ व्रत का सबसे अनुशासित दिन माना जाता है. पंडित प्रेमसागर पांडे के अनुसार, खरना आत्मसंयम, भक्ति और शुद्धता का प्रतीक है. व्रती दिनभर अन्न-जल त्याग कर सूर्यास्त के बाद भगवान सूर्य को नमन करने के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं.
खरना की पूजा सूर्यास्त के ठीक बाद की जाती है. व्रती दिनभर उपवास रखकर संध्या के समय स्नान के बाद नए वस्त्र धारण करते हैं. इसके बाद घर में मिट्टी या पीतल के चूल्हे पर प्रसाद तैयार किया जाता है. इस प्रसाद में गुड़ की खीर, रोटी, और केले का भोग शामिल होता है. पूजा के बाद व्रती सूर्य देव और छठी मइया की आराधना करते हुए प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसे “खरना प्रसाद” कहा जाता है.
