लाइव सिटीज, पटना: महावीर मन्दिर में जनकसुता जगतजननी जानकी माता का प्राकट्य उत्सव पूरे विधि-विधान और भक्तिभाव से मनाया गया। शुक्रवार को जानकी नवमी के अवसर पर महावीर मन्दिर में दशकों से चली आ रही परंपरा के अनुसार पूजन और संकीर्तन का आयोजन किया गया। सुबह पौने नौ बजे महावीर मन्दिर की पत्रिका धर्मायण के संपादक और संस्कृत के विद्वान पंडित भवनाथ झा के निर्देशन में संकल्प के साथ पूजन प्रारंभ हुआ। महावीर मन्दिर के पुरोहित पंडित सौरभ पांडेय यजमान के रूप में थे। पंडित गजानन जोशी ने पूजन में सहयोग किया।
इस अवसर पर महावीर मन्दिर न्यास के सचिव आचार्य किशोर कुणाल भी उपस्थित रहे। महावीर मन्दिर के दक्षिण-पूर्व कोण पर स्थित जानकी जी की प्रतिमा के समक्ष प्रामाणिक जानकी पूजन पद्धति से पूजन हुआ। लगभग डेढ़ घंटे चले विशिष्ट पूजन के बाद जानकी सहस्रनाम का पाठ किया गया। फिर हवन हुआ। आखिर में माता जानकी जी की आरती हुई। इसके बाद महावीर मन्दिर में उपस्थित भक्तों के बीच हलवा प्रसाद का वितरण किया गया।
महावीर मन्दिर न्यास के सचिव आचार्य किशोर कुणाल ने बताया कि वैशाख शुक्ल नवमी को माता जानकी का प्राकट्य दिवस माना जाता है। राजा जनक की पुत्री होने के कारण उन्हें जनकसुता भी कहा जाता है।
रामचरितमानस के बालकांड में गोस्वामी तुलसीदास जी ने जानकी माता की स्तुति में एक चौपाई लिखी है। महावीर मन्दिर में जानकी नवमी के पूजन के बाद मिथिला की भजन मंडली ने इसी चौपाई का गायन कर पूरे दिन संकीर्तन किया। यह चौपाई है-‘जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की।।ताके जुग पद कमल मनावउं। जासु कृपा निरमल मति पावउं।। इसका भावार्थ है -‘ राजा जनक की पुत्री, जगत की माता और करुणानिधान रामचन्द्र जी की प्रियतमा जानकी जी के दोनों चरण कमल को मैं मनाता हूँ जिनकी कृपा से मैं निर्मल मति पा सकूं। ‘ आचार्य किशोर कुणाल ने कहा कि जानकी माता त्याग की प्रतिमूर्ति हैं। उनकी कृपा से भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण होती है।