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वाहन स्क्रैपेज नीति के ठप होने से बिहार को सालाना ₹1,447 करोड़ का भारी नुकसान, नागरिकों की सुरक्षा भी दांव पर

लाइव सिटीज, पटना: बिहार -एक ओर जहां उत्तर प्रदेश, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्य राष्ट्रीय वाहन स्क्रैपेज नीति का लाभ उठाकर अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहे हैं और पर्यावरण को स्वच्छ बना रहे हैं, वहीं दूसरी ओर बिहार इस मामले में खतरनाक रूप से पिछड़ गया है। इसके परिणामस्वरूप राज्य के खजाने को अनुमानित ₹1,447 करोड़ का वार्षिक नुकसान हो रहा है और सार्वजनिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरे पैदा हो गए हैं।

स्वैच्छिक वाहन-बेड़ा आधुनिकीकरण कार्यक्रम (V-VMP), जो पुरानी, प्रदूषणकारी और असुरक्षित गाड़ियों को चलन से बाहर करने के लिए बनाई गई एक राष्ट्रीय नीति है, बिहार में कार्यान्वयन की गंभीर विफलताओं के कारण लगभग पूरी तरह से निष्प्रभावी हो गई है। इस निष्क्रियता ने न केवल एक उभरते हुए उद्योग को बाधित किया है, बल्कि एक उच्च जोखिम वाले, अनियमित और अनौपचारिक स्क्रैपिंग क्षेत्र को भी फलने-फूलने का मौका दिया है।

एक नीति, दो तस्वीरें: बिहार बनाम अन्य राज्य

आंकड़े एक चिंताजनक वास्तविकता को उजागर करते हैं। जहां स्पष्ट और सहायक नीतियों वाले राज्य हजारों वाहनों को स्क्रैप कर रहे हैं, वहीं बिहार का संगठित क्षेत्र नगण्य संख्या में ही वाहनों को स्क्रैप कर पाया है।

स्क्रैप किए गए वाहन (निजी):

राजस्थान: 7,822

उत्तर प्रदेश: 6.247

बिहार: 522

यह बिहार की सड़कों पर मौजूद अनुमानित 12 लाख “एंड-ऑफ-लाइफ” वाहनों (ELVs) में से 0.05% से भी कम की नीतिगत सफलता दर को दर्शाता है। यह समस्या सरकारी वाहनों के मामले में और भी गंभीर है: 2023 में नीलामी के लिए घोषित 2,017 सरकारी वाहनों में से अब तक केवल लगभग 500 की ही प्रक्रिया पूरी हुई है. जबकि अनुमान है कि पिछले दो वर्षों में 5,000 से अधिक अतिरिक्त सरकारी वाहन ELV बन चुके हैं।

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