लाइव सिटीज, गया: बिहार के गया में ब्राह्मणी घाट में एशिया की सबसे बड़ी भगवान सूर्य की प्रतिमा है. सतयुग से यह प्रतिमा स्थापित मानी जाती है. शास्त्रों का हवाला देते हुए पुजारी बताते हैं, कि यह प्रतिमा अत्यंत ही दुर्लभ है. वहीं, गया में उदयीमान- मध्याह्न काल और संध्याकालीन प्रतिमा के रूप में भी भगवान भास्कर विराजमान हैं.
तीनों प्रहर के रूप में विराजमान है भगवान भास्कर
गया में भगवान भास्कर तीनों प्रहर के रूप में विराजमान हैं. पितामहेश्वर में उत्तरायण सूर्य, सूर्यकुंड में दक्षिणायन सूर्य और ब्राह्मणी घाट में दोपहर के भगवान बिरंची के रूप में भगवान भास्कर विराजमान हैं. गया शहर में यह तीनों मंदिर चंद मीटर की दूरी पर पंचकोशी गया जी तीर्थ में स्थापित हैं. हालांकि मानपुर के सूर्य मंदिर को भी उत्तरायण सूर्य के रूप में मान्यता है.
उदयीमान सूर्य की पहली किरण सबसे पहले पिता महेश्वर में स्थापित भगवान सूर्य की प्रतिमा पर पड़ती हैपिता महेश्वर मंदिर में अलौकिक बात है, कि यहां मंदिर में स्थापित भगवान सूर्य की प्रतिमा पर उदयीमान सूर्य की किरण सबसे पहले पड़ती है. इस मंदिर के किनारे पर स्थित सरोवर में छठ में उदयीमान भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया जा जाता है. वहीं,सूर्यकुंड में स्थित भगवान भास्कर की प्रतिमा की काफी महिमा है. यहां पूजा करने के बाद लोग निरोग हो जाते हैं. साथ ही संतान की प्राप्ति और अन्य मन्नते पूरी हो जाती हैं. यहां अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा सदियों से है.
ब्राह्मणी घाट में सपरिवार विराजमान है भगवान सूर्य
ब्राह्मणी घाट में अपराहन के भगवान भास्कर की प्रतिमा है. यहां भगवान सूर्य पूरे परिवार के साथ विराजमान हैं. ब्राह्मणी घाट में स्थापित भगवान सूर्य की प्रतिमा काफी प्राचीन है. यह प्रतिमा अति दुर्लभ बताई जाती है और मान्यता है कि देश की छोड़ दें, तो एशिया में इस तरह की प्रतिमा दुर्लभ है. यह जो मन्नत मांगी जाती है, वह निश्चित तौर पर पूरी होती है. यहां भगवान सूर्य अपनी पत्नी संज्ञा, पुत्र शनि और यम, 2 देवियां उषा और प्रत्यूषा, सैनिक-सेवक के साथ सात घोड़े और 1 चक्के पर विराजमान हैं. यह प्रतिमा अत्यंत ही दुर्लभ है. एक साथ परिवार के साथ विराजमान भगवान सूर्य की प्रतिमा नहीं ही मिलती है.
भगवान सूर्य के 12 नाम, उनमें भगवान विरंची भी एक
पुजारी मनोज कुमार मिश्र बताते हैं कि सूर्य के 12 नामों में से एक भगवान विरंची की यहां मध्यकालीन प्रतिमा है. इस तरह की प्रतिमा पूरे विश्व में शायद ही कहीं होने की बात पुजारी बताते हैं. प्रतिमा के दाहिने ओर उनके पुत्र शनि, बायें ओर यम, पैर के पास पत्नी संज्ञा और सारथी के रूप में अरुण मौजूद हैं. सात घोड़े के रथ पर सभी सवार हैं. प्रातः कालीन उषा और संध्याकालीन प्रत्यूषा की भी प्रतिमा है. कहते हैं कि शास्त्रों के हिसाब से प्रथम सतयुुग के काल में इस मंदिर की स्थापना हुई है. यहां मध्याह्न कालीन भगवान भास्कर की प्रतिमा होने के कारण सुबह और शाम दोनों वक्त छठ में अर्ध्य दिया जाता है.