लाइव सिटीज, पटना: बिहार के पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने फेसबुक पर पोस्ट करते हुए लिखा है कि संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की परीक्षा में सफल हुए बिहारी छात्रों के सफल होने में बिहार की वर्तमान शिक्षा व्यवस्था का कितना योगदान है? हर साल की भांति इस साल भी बिहार के छात्र-छात्राओं का संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की परीक्षा में विपरीत परिस्थितियों में अभूतपूर्व प्रदर्शन रहा. इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं. परन्तु, क्या संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की परीक्षा में बिहार के छात्र-छात्राओं की सफ़लता, बिहार की शिक्षा व्यवस्था को मापने का पैमाना हो सकता है ? जवाब है नहीं.
उन्होंने यह भी लिखा है कि बिहार एक मात्र ऐसा राज्य है जहां तीन साल का स्नातक चार से पांच साल में और दो साल का स्नातकोत्तर तीन से चार साल में पूरा किया जाता है. विलंबित सत्र की वजह से हर साल न्यूनतम 15 लाख छात्र प्रभावित होते हैं और यह समस्या दशकों से है. परिणामस्वरूप, बिहार के छात्र-छात्रा उच्च शिक्षा के लिए अन्य राज्यों में पलायन कर जाते हैं. बिहार राज्य की करीब 32 फीसदी आबादी 16-17 के आयु वर्ग की है और इसका सिर्फ 44.07 फीसदी हिस्सा ही माध्यमिक से उच्च माध्यमिक शिक्षा की तरफ जाता है, जबकि प्राथमिक से माध्यमिक में स्थानांतरित होने वाले बच्चों का प्रतिशत 84.64 है. इसका मतलब यह हुआ कि बिहार की बहुत बड़ी आबादी बिना गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के श्रम बल में तब्दील हो रही है. अगर इसको संक्षेप में बोला जाए तो बिहार श्रमवीर(मज़दूर)पैदा कर रहा है.
उन्होंने आगे लिखा है कि बिहार में शिक्षा के बदहाली के बावजूद बिहार के छात्र दूसरे राज्यों से तैयारी कर इतना सफलतम परिणाम लाते हैं तो जरा सोचिए कि युवाओं को बिहार में अच्छी शिक्षा व्यवस्था मिले तो राज्य का कितना विकास होगा. इसके अलावा एक दूसरा पहलू भी है. राज्य के महत्वपूर्ण संसाधन छात्रों के रहन-सहन और शिक्षण शुल्क मद में प्रति वर्ष करीब अस्सी हज़ार करोड़ रुपये का राज्य के बाहर पूंजी पलायन भी हो रहा है. साथ ही राज्य से एक बार बाहर निकल जाने पर प्रतिभाशाली छात्र वापस बिहार नहीं के बराबर लौटते हैं, जिसका खामियाजा राज्य के विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है. क्योंकि राज्य को चलाने के लिए विभिन्न तरीक़े के कार्यों के लिए स्किल्ड एवं कमिटेड लोगों की जरूरत होती है लेकिन उस तरह के प्रशिक्षित मानव संसाधन की उपलब्धता नहीं होने से स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में प्रशिक्षित लोगों की भारी कमी है, जिसका ख़ामियाज़ा यह है कि जितने प्रशिक्षित लोगों की आवश्यकता है, उतने लोग उपलब्ध नहीं हैं.