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जातीय जनगणना की व्यवहार्यता पर भाजपा ने उठाया सवाल, कहा- क्या बिहार में फिर से जातीय उन्माद फैलाना चाहते हैं नीतीश कुमार

लाइव सिटीज, पटना: बिहार में बहुचर्चित जातिगत सर्वे आखिरकार शनिवार से शुरू हो गया. करीब 500 करोड़ रुपये की लागत से हो रहा यह सर्वे दो चरणामें पूरा किया जाएगा. पहले चरण को 21 जनवरी तक पूरा कर लिया जाएगा. इसमें राज्य के सभी परिवारों का पूरा डेटा सिस्टम में फीड किया जाएगा. वहीं इसके बाद दूसरा चरण शुरू होगा. इसमें सभी परिवार को जाति, उपजाति और धर्म के हिसाब से वर्गीकृत किया जाएगा. इसके लिए पहले ही बिहार सरकार के कर्मचारियों को ट्रेनिंग दे दिया गया है.

वहीं, नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा ने नीतीश सरकार को जातीय उन्माद को बढ़ावा देने वाला करार देते हुए कहा कि ये सोचने की बात है कि वर्ष 1931 के बाद आजाद भारत में किसी सरकार ने जातीय जनगणना की आवश्यकता क्यों नहीं समझी? केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद मानो जैसे देश में जाति फैक्टर धीरे-धीरे कमजोर होने लगा. लोग विकास की बात करने लगे. तब क्षेत्रीय दलों की जातीय आधारित राजनीति खतरे में पड़ गई. ऐसे दल फिर से समाज को आपस मे लड़ाकर अपना उल्लू सीधा करना चाहते है.

उन्होंने कहा कि राम मनोहर लोहिया, महात्मा गांधी, जयप्रकाश नारायण और  पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने जाति विहीन समाज और भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनाने की बात की. लेकिन, नीतीश कुमार उसकी जगह जो जातीय उन्माद फैला रहे थे उसी की ओर बढ़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि जाति जनगणना पर होने वाला 500 करोड़ के खर्च का क्या मतलब है. राज्य में बेरोजगार युवा सड़कों पर बैठे हैं. बीपीएससी- बीएसएससी के जो प्रतिभावान युवा सड़क पर बैठे हैं उनकी समस्या का समाधान कहां होगा?

नीतीश कुमार से विजय सिन्हा ने सवाल किया कि बिहार जब आजादी का शताब्दी वर्ष मनाएगा तो नीतीश राज्य को क्या देना चाहते हैं. जब जरूरत बिहार के विकास की गति बढ़ानी की है तो उस दौर में नीतीश सत्ता प्राप्ति के लिए जाति के नाम पर बिहार को प्रदूषित करना चाहते हैं. जातीय उन्माद पैदा करना चाहते हैं. विजय सिन्हा ने कहा कि बिहार से जो लोग बाहर हैं नीतीश कुमार उनकी चिंता करें. किस कारण पिछले 32 साल में बिहार से लोगों का पलायन हुआ. किसके कारण वह बिहार के छोड़े.

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